spotnow @ jaipur. Health News: पार्किनसन रोग एक न्यूरोलॉजिकल रोग है जो मस्तिष्क को इस प्रकार से प्रभावित करता है कि मांसपेशियों की कार्य विधि, मस्तिष्क की कई प्रणालियां और याददाश्त प्रभावित हो जाती हैं।
Health News: डॉक्टर रामावतार शर्मा बताते है कि पार्किनसन जैसे स्नायु रोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। इस रोग में स्नायु कोशिका तंत्र जिसे न्यूरॉन कहते है को नुकसान पहुंचता है जिसके फलस्वरुप मांसपेशियों पर नियंत्रण कमजोर पड़ने लगता है। ऐसा होने से विशेष तौर पर गर्दन तथा बाहों में हल्के झटके और कंपन होने लगता है क्योंकि मांसपेशियों पर नियंत्रण समाप्त सा हो जाता है।
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पार्किनसन रोग मस्तिष्क में डोपामिन नामक यौगिक की कमी से हुआ माना जा रहा है। डोपामिन स्नायु तन्त्र ( नर्वस सिस्टम ) में विद्युत प्रवाह के लिए जिम्मेदार होता है इसलिए इसकी कमी से शरीर की कार्यविधि में बड़ा प्रभाव पड़ता है। पार्किनसन रोग क्यों होता है इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। कुछ लोगों में यह रोग मस्तिष्क में कुछ विशेष तत्वों के इकट्ठा होने से होता पाया गया है तो कुछ अन्य में अनुवांशिकता भी जिम्मेदार होती है। इसके अलावा 1980 के बाद जब इस बीमारी में तीव्र वृद्धि पाई जाने लगी तो शोधकर्ताओं में इसका कारण जानने की उत्सुकता उभरी।
Health News: डॉक्टर रामावतार शर्मा बताते है कि अमेरिका तथा यूरोप के कई देशों में पार्किनसन पर व्यापक शोध होने लगे तो ध्यान इस तरफ गया कि जब से कीटनाशक ( पेस्टीसाइड ) और खरपतवार नष्ट करनेवाले शाकनाशक ( हर्बिसाइड ) का उपयोग बढ़ा है तब से पार्किनसन रोग से पीड़ित लोगों की संख्या में बड़ी वृद्धि पाई जाने लगी है। यहां के अध्ययनों में पाया गया कि पेस्टीसाइड और हर्बिसाइड की को यदि प्रति हेक्टर एक निश्चित और सुरक्षित मात्रा से अधिक उपयोग में लिया जाए तो अनाज, फल और सब्जी के उपभोक्ताओं में पार्किनसन रोग होने का प्रतिशत बढ़ जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ब्रिटेन में किसान को प्रति हेक्टर जमीन के हिसाब से ही यह कोटा मिलता है और इन दोनों नाशकों की एक तरह का राशनिंग होती है।
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भारत में ये सब जहरीले पदार्थ खुले में बिकते है तथा जनता एवम् किसान दोनों में ही कोई इसके पार्किनसन संबंधित दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक नहीं है। ज्ञान के अभाव में किसान इनका आवश्यकता से अधिक उपयोग कर रहा है। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं होगा कि आने वाले कुछ दशकों में भारत डायबिटीज के साथ पार्किनसन की भी राजधानी होगा। यदि ऐसा हुआ तो यह सब राष्ट्रीय शर्म की बात होगी। जन स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सरकार को पेस्टीसाइड एवम् हर्बिसाइड की बिक्री नियंत्रित करनी चाहिए एवम् किसान को फसल और जमीन की मात्रा के अनुपात में ही इनको दिया जाना चाहिए।
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एक निश्चित मात्रा से नीचे के स्तर का उपयोग हानिकारक नहीं होता है तो नियंत्रित उपयोग से लाखों लोगों को पार्किनसन रोग से बचाया जा सकता है।