Spotnow @ Nagaur. Nagaur News: कांग्रेस के कद्दावर नेता नाथूराम मिर्धा भाजपा के निशान कमल के फूल को सत्यानाशी का फूल कहते थे। वह कहते थे कि सडक़ां की काईं जरुरत है चोरी-चकारी बढ़ ज्यासी। उनके और भी चर्चित डायलॉग थे, जिन्हेें आज भी लोग याद करते है।
एक बार एक सभा में उन्होंने लाइट नहीं आने की बात पर देशी अंदाज में कुछ ऐसा कह दिया लोग हंसने पर मजबूर हो गए थे। कुछ ऐसा ही मारवाड़ी फटकारे अब भी नागौर की राजनीति में चल रहे हैं। नाथूराम मिर्धा के भतीजे रिछपाल मिर्धा ने कांग्रेस छोडऩे के बाद एक सभा में कहा था कि कांग्रेस तो बुझ्योड़ी धूणी है।
जिसके जवाब में नाथूराम मिर्धा के पौते मनीष मिर्धा ने कहा कि कांग्रेस बुझ्योड़ी धूणी कोनी, बे उतरेड़ी हांड्या ही जो अब की काम की कानी।
Nagaur News: आज उनकी पोती ज्योति मिर्धा भाजपा के उसी कमल के फूल के निशान पर नागौर से लोकसभा का चुनाव लड़ रही है। उनके सामने प्रतिद्वंदी है आरएलपी के हनुमान बेनीवाल, जो कांग्रेस से गठबंधन में है। अब इनके बीच मुकाबला रोचक हो गया है। माहौल भले ही ज्योति के पक्ष में है लेकिन जनता के बीच हनुमान बेनीवाल भी छाए हुए है। नागौर लोकसभा की यदि भूली-बिसरी यादों को ताजा किया जाए तो यहां मिर्धा परिवार हमेशा ही राजनीतिक सूर्खियों में रहा है।
कई राजनीतिक दल बदले-
नाथूराम मिर्धा का मतदाताओं पर जादुई असर था। मिर्धा किसी भी पार्टी में जाते, वहां से चुनाव जीतकर आ जाते थे। उन्होंने 1980 में कांग्रेस यूनाइटेड से चुनाव जीता। उसके बाद वह कांग्रेस छोडक़र जनता दल में चले गए। वहां पहले तो वह जनता दल से 1985 में विधायक बने, इसके बाद में 1989 में जनता दल से ही सांसद भी बन गए। इसके बाद मिर्धा ने दोबारा से कांग्रेस में वापसी की और साल 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव जीते।
जब हरीश कुमावत को हराया-
– नाथूराम मिर्धा की लोगों के बीच गहरी पैठ थी। बात 1996 के लोकसभा चुनावों की है जब बीमारी के कारण मिर्धा को दिल्ली एम्स अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जिसके चलते नाथूराम मिर्धा चुनाव का पर्चा दाखिल करने भी नहीं जा पाए थे। नामांकन के बाद बीमारी के कारण मिर्धा चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं जा सके थे।
- ऐसे में उनकी ओर से मतदाताओं के बीच एक पैम्पलेट बंटवाया गया। इसमें अपील की गई थी कि जिस प्रकार अंतिम संस्कार में थेपड़ी श्रद्धांजलि देकर दिवंगत को श्रद्धांजलि दी जाती है, उसी प्रकार नाथूराम मिर्धा को एक वोट देकर सम्मान प्रकट किया जाए। इस अपील का इतना जबरदस्त असर हुआ कि मिर्धा ने चुनाव में एकतरफा जीत हासिल की।
- उन्होंने बीजेपी के हरिश्चंद्र कुमावत को 1 लाख 59 हजार 34 वोटों से करारी शिकस्त दी थी। इसके पहले भी आपातकाल के बाद 1977 में नाथूराम मिर्धा ने ही पूरे उत्तरीभारत में अपनी जीत दर्ज करवाई थी। तब इंदिरा गांधी जैसे दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए थे।
पोती ज्योति भाजपा में हुई शामिल-
नाथूराम के बेटे भानूप्रकाश मिर्धा भाजपा में शामिल हो गए और वह भाजपा से सांसद बन गए। हाल ही में विधानसभा चुनाव से पहले उनकी पोती और कांग्रेस से लोकसभा की सांसद रह चुकी ज्योति मिर्धा ने भाजपा का दामन थाम लिया। ज्योति के बाद नाथूराम मिर्धा के भतीजे रिछपाल मिर्धा और उनके कई रिश्तेदार भी भाजपा में शामिल हो गए। अब उनका मुकाबला कांग्रेस समर्थित और आरएलपी के हनुमान बेनीवाल के साथ है।
रिपोर्ट – हेमंत जोशी
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