Spotnow @ Jaipur. Healthy Food: भारत ने 2018 में अपना मिलट्स का वर्ष मनाया था जिसमें इन अनाजों को पौष्टिक अन्न का नाम दिया गया था।
डॉक्टर रामावतार शर्मा ने बताया कि 2023 में भारत के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष ( 2023 ) को ” ईयर ऑफ मिलेट्स ” घोषित किया। भारत इस समय में मिलेट्स का सबसे बड़ा उत्पादक है हालांकि 1960 के समय हुई हरित क्रांति में मिलट्स की बजाय गेहूं तथा धान की फसल बढ़ाने पर अत्यधिक ध्यान दिया गया था क्योंकि करोड़ों लोगों के भूखे पेट को भरना प्राथमिकता थी जहां इन दोनों तरह के अन्न पर वैश्विक अनुसंधान आसानी से उपलब्ध था।
वर्तमान समय में भारतीय कृषि विभाग मिलट्स के उत्पादन को बड़े स्तर पर बढ़ाना चाहता है ताकि कम वर्षा वाले क्षैत्रो में इनका उत्पाद बढ़ाया जा सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारत सरकार मिलेट्स के नई हाइब्रिड बीज प्रयोग में लाना चाहती है।
Healthy Food: ऐसा नहीं है कि 2018 से पहले मिलेट्स सुधार के प्रयास ही नहीं हुए। भारत में 1958 में कुछ योजनाएं बनी थी जिनमें कपास, मिलेट्स और तिलम बीजों में सुधार के प्रयास किए गए थे ताकि पौधे मजबूत हों और फसल भी ज्यादा हो। आगे चलकर 1965 में अखिल भारतीय मिलेट सुधार योजना भी प्रारंभ की गई थी। इनके अलावा स्थानीय स्तर पर भी कुछ कार्य होते रहे हैं।
बीमारी मुक्त और अधिक पैदावार देने के लिए बाजरा और ज्वार पर सर्वाधिक कार्य हुआ है जिसमें इन दोनों के दर्जनों प्रकार के संकर बीज उपलब्ध हैं।
अनाज की कमी वाले देश में दशकों तक बात सिर्फ पैदावार बढ़ाने तक ही अधिकता से होती रही पर समय के साथ इन अनाजों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते रहे हैं। क्या अधिक पैदावार निम्न गुणवत्ता की कीमत पर हो रही है ? इस महत्वपूर्ण सवाल को कभी भी बड़े जन संवाद का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
Healthy Food: भारतीय खाद्य संस्थान ( एन आई एन ) यानि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन के अनुसार 1980 से लेकर आज तक मिलेट्स की गुणवत्ता में गिरावट ही देखी गई है। बजरा और ज्वार की संकर बीज वाली फसल में कैल्शियम, जिंक, फास्फोरस और लोह की कमी पाई गई है। तुलनात्मक स्तर पर देशी बीज की फसल गुणवत्ता में संकर बीज की फसल से स्पष्ट तौर पर बेहतर है पर उसमें उत्पाद कम होता है।
विशाल आबादी और जीवन के हर पहलू के व्यवसायीकरण होने के कारण गुणवत्ता का स्थान मात्रा ने ले लिया है जिसके फलस्वरूप कई स्थानीय मिलेट्स गायब सी हो गई हैं।
पिछले कुछ दशकों में रागी, कंगनी, कुटकी, समा, प्रोसो, कोडो और ब्राउंटॉप आदि मिलेट्स के संकर बीज विकसित होने लगे हैं। मिलट्स निश्चित तौर पर बेहतर अन्न हैं पर संकर बीजों से यदि गुणवत्ता प्रभावित होती है तो ये प्रयास स्वास्थ्य की बजाय पेट भरने के प्रयास हो कर रह जायेंगे।
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यहां कृषि विशेषज्ञों द्वारा एक बात का खुलासा होना चाहिए। अनाज की गुणवत्ता क्या बीज की वजह से कम होती है या फिर अधिक पैदावार होने के कारण जमीन की उर्वरकता का निम्न स्तरीय होना होता है?
चूंकि नए बीज के उपयोग से फसल देशी बीज की तुलना में कई गुना ज्यादा होती है तो संभव है कि जमीन में उतने गुणकारी तत्व ही नहीं हों। यदि ऐसा है तो किसानों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे लोग गोबर और पेड़ों के पत्तों का व्यापक स्तर पर खाद के रूप में प्रयोग करें ताकि अनाज की गुणवत्ता में सुधार हो।
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खेतों की मेड पर ऐसे पेड़ लगाए जाएं जो पतझड़ में पत्ते प्रदान करें और दीर्घकाल में किसान के लिए आर्थिक रूप में में भी काम आएं। खेजड़ी, रोहिड़ा जैसे पेड़ इस श्रेणी में आते हैं।