नगर एकत्रीकरण कार्यक्रम में डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमने अपने धर्म को भूलकर स्वार्थ के पीछे भागना शुरू कर दिया है, जिससे छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि हमें इन भेदभावों को पूरी तरह मिटाना होगा, खासकर जहां संघ की गतिविधियां प्रभावी हैं। संघ की शक्ति से हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि मंदिर, पानी, और श्मशान सभी हिंदुओं के लिए खुले हों। इसके लिए समाज का मन बदलना जरूरी है और सामाजिक समरसता के माध्यम से ही बदलाव लाया जा सकता है।
हिंदू का मतलब उदार मानव
डॉ. भागवत ने यह भी कहा कि हिंदू धर्म असल में मानव धर्म है, जो विश्व धर्म है और सबके कल्याण की कामना करता है। हिंदू वह है जो सब कुछ स्वीकार करता है और सबके प्रति सद्भावना रखता है। हमें राष्ट्र को ताकतवर और समृद्ध बनाने के लिए मेहनत करनी होगी और पूरे समाज को सक्षम बनाना पड़ेगा।पराक्रमी पूर्वजों का वंशज है। जो विद्या का उपयोग विवाद पैदा करने के बजाय ज्ञान देने के लिए करता है, जो धन का उपयोग मदमस्त होने के लिए नहीं बल्कि दान के लिए करता है, और जो शक्ति का उपयोग कमजोरों की रक्षा के लिए करता है, वही असली हिंदू है। हिंदू वह है, जिसकी संस्कृति और मूल्य सबको स्वीकार करते हैं, चाहे पूजा किसी की भी हो, भाषा कोई भी हो, जात-पात क्या हो, या खानपान और रीति-रिवाज कैसे भी हों।
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संघ को मानने लगे लोग
उन्होंने कहा कि पहले संघ को कोई नहीं जानता था, लेकिन अब लोग जानने लगे हैं। पहले संघ को मानने वाले कम थे, लेकिन आज विरोध करने वाले भी इसे मानते हैं, भले ही वे सार्वजनिक रूप से विरोध करें। इसलिए हमें हिंदू धर्म, संस्कृति और समाज का संरक्षण करना चाहिए ताकि राष्ट्र की उन्नति हो।
पर्यावरण के प्रति हिंदू की परंपरा को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने कहा कि हमें पानी बचाना, सिंगल-यूज प्लास्टिक हटाना, पौधे लगाना, और अपने घर और समाज को हरा-भरा बनाना चाहिए। इन छोटी-छोटी बातों से शुरुआत कर हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं।