अलवर में भगवान जगन्नाथजी की भव्य शोभायात्रा इस वर्ष 4 जुलाई को विशेष आकर्षण का केंद्र बनने जा रही है। इस बार भगवान दुबई से आई विशेष पोशाक और इत्र से सजे हुए नजर आएंगे।

वे लगभग 110 साल पुराने ‘इंद्र विमान’ में सवार होकर माता जानकी से विवाह करने के लिए बारात लेकर निकलेंगे। इस यात्रा में घोड़े, ऊंट, बैंड और भव्य झांकियां शामिल होंगी, और ‘हरे राम हरे कृष्णा’ की भक्ति धुनों पर भक्त झूमते चलेंगे।

पहली बार दुबई से आई पोशाक और इत्र-
इस ऐतिहासिक आयोजन की खास बात यह है कि भगवान जगन्नाथ की पोशाक और इत्र दुबई के एक भक्त द्वारा भेजे गए हैं। पहली बार ऐसा हो रहा है जब भगवान की पोशाक सीधे दुबई में बनकर आई है। साथ ही 110 साल पुराने इंद्र विमान की पोशाक भी दिल्ली से मंगवाए गए कपड़े से तैयार की जा रही है। तीन कारीगर 15 जून से इस काम में जुटे हुए हैं।

6 जुलाई को जानकी मैया की सवारी और वरमाला महोत्सव –
4 जुलाई की शाम साढ़े 6 बजे निकलने वाली शोभायात्रा के बाद, 6 जुलाई को सुबह 8:30 बजे जानकी मैया की सवारी निकाली जाएगी, जिसमें 1100 महिलाएं कलश लेकर रूपबास के लिए रवाना होंगी। उसी रात भगवान जगन्नाथजी का वरमाला महोत्सव मनाया जाएगा। रूपबास में यह आयोजन “जय जगन्नाथजी-जय जानकी मैया” के जयघोषों के साथ गूंजता है।
7 जुलाई को भर मेला, 8 जुलाई को रथ यात्रा से वापसी-
7 जुलाई को रूपबास में बड़ा मेला भरेगा और 8 जुलाई को भगवान जगन्नाथ माता जानकी के साथ रथयात्रा के माध्यम से वापस लौटेंगे। इस दौरान धार्मिक आयोजन और भजन-कीर्तन लगातार चलते रहेंगे।
दर्शन होंगे दुर्लभ ‘बूढ़े जगन्नाथजी’ के-
जैसे ही भगवान जगन्नाथजी यात्रा पर निकलते हैं, उनके स्थान पर मंदिर में बूढ़े जगन्नाथजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। यह प्रतिमा केवल साल में दो बार दर्शन के लिए उपलब्ध होती है। पंडित देवेंद्र शर्मा ने बताया कि इस दौरान देशभर से श्रद्धालु विशेष दर्शन के लिए आते हैं।

250 वर्षों से चल रही है परंपरा-
अलवर के सुभाष चौक स्थित पुराना कटला मंदिर से भगवान की यात्रा शुरू होती है और रूपबास स्थित मंदिर में जाकर विवाह सम्पन्न होता है। मंदिर के पंडितों का दावा है कि पुरी के बाद यह देश की सबसे बड़ी और प्राचीन जगन्नाथ यात्रा है, जो पिछले 250 वर्षों से अनवरत रूप से आयोजित हो रही है। यहां भगवान जगन्नाथ की पूजा विष्णु स्वरूप में और माता जानकी की पूजा लक्ष्मी रूप में होती है।
भव्य सजावट और आकर्षक रथ-
110 साल पुराने इंद्र विमान की भव्यता इस बार नए रूप में दिखेगी। मंदिर परिसर में इसका डेमो भी मौजूद है, जो लगभग 50 साल पुराना है। रथ की सजावट, नई लाइटिंग और आकर्षक पोशाकें इस धार्मिक आयोजन को और भी खास बना रही हैं।

यह आयोजन केवल एक धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक गौरव, शृंगार और समर्पण का प्रतीक है, जिसमें लोक आस्था और दिव्यता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
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