न्यूज डेस्क @ जयपुर। हेल्थ टिप्स: बचपन का तनाव हार्ट अटैक का एक बड़ा कारण हो सकता है। आज कल हम स्कूल के छात्रों और 28-35 उम्र के लोगों में हार्ट अटैक की घटनाओं के बारे में सुनते रहते हैं। इन घटनाओं को लेकर लोगों में काफी भय भी व्याप्त है।
लोग इन घटनाओं का कारण जानना चाहते हैं। हाल ही में जर्नल ऑफ अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन में एक अध्ययन लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें हृदय रोग एवम् बाल्यावस्था तनाव के संबंध को उजागर करने का प्रयास किया गया है। लेख के अनुसार बचपन का तनाव विकसित हो रहे बच्चों में स्ट्रेस हार्मोन्स उत्पन्न करता है जिसके फलस्वरूप युवावस्था में पहुंचने तक कई बच्चों में हृदय रोग विकसित हो जाता है। इस अध्ययन में बालकों की गर्दन की रक्तवहिनी की मोटाई, बीएमआई, रक्तचाप, शरीर में वसा की मात्रा, रक्त में चीनी का स्तर और नर तथा मादा चरित्रों के अनुपात को आधार बनाया गया है।
आज बदलते जीवन परिपेक्ष में हम सबकुछ जल्दबाजी में पाना चाहते हैं परंतु भूल जाते हैं कि यदि हम सबकुछ शीघ्रता से पाएंगे तो संभावना बनती है कि मृत्यु भी शीघ्र आ जाए। शहरों में छोटे बच्चों को सुबह की आनंददायक नींद से उठा कर प्रातः 6-7 बजे स्कूल भेजना किस समझदारी का हिस्सा हो सकता है? एक बालक की नींद 10-12 घंटे रोजाना होना चाहिए और प्रातः बेला में बचपन की कुछ मस्तियां होनी चाहिए। क्या ऐसा हो रहा है? आंख खुलने के साथ ही आप अपने बच्चे को भागदौड़ का तनाव देते हो, फिर स्कूल पहुंचने का तनाव, फिर अध्यापक का होमवर्क तथा अन्य बातों से संबंधित तनाव, फिर आपसी प्रतिस्पर्धा आदि अनेकों कारण हैं जो एक बालक को सुबह आंख खुलने से लेकर रात सोने तक लगातार किसी न किसी रूप में प्रताड़ित करते रहते हैं।
ऐसा होने से उसके शरीर में तनाव संबंधित स्ट्रेस हार्मोन्स के रक्त स्तर लगातार उच्च बने रहते हैं। स्ट्रेस हार्मोन्स के दीर्घकाल तक बने उच्च रक्त स्तर कई युवाओं और यहां तक कि किशोरों में भी हार्ट अटैक की उत्पत्ति कर सकते हैं।
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नई जीवनशैली और विशेष तौर पर शहरी जीवन में बच्चों से गली मोहल्ले, बाग बगीचे, खेल के मैदान, सामाजिक जीवन और बचपन के याराने आदि सभी कुछ छिन गए हैं। बच्चे पांच साल से सीधे पच्चीस साल के हो रहे हैं। माता पिता अपनी संतान द्वारा ही अपना जीवन सुधारना चाहते हैं। स्वयं दिशाहीन लोग अबोध बालकों को दिशा बताने की नादानी करते नजर आते हैं। हर कोई उन्हें उच्च पद और मोटे पैकेज के स्वप्निल संसार की तरफ धकेल रहा है जिसके कारण बचपन ही बुढा गया है , जवानी आती नहीं है और आए तो बूढ़े लोगों को बर्दास्त नहीं है।
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अब बूढी जवानी में यदि हार्ट अटैक आए तो आश्चर्य कैसा? मुक्त हंसी की नगण्यता, मुक्त नृत्य का अभाव, त्योहारों के अबोध आनंद की विलुप्ति, प्रकृति से दूरी, बंद कमरों में मेज कुर्सी पर चिपके बालक, आसमान को मुट्ठी में पकड़ने की लालसा, माता पिता की अजगरी महत्वकांक्षाएं और स्वयं की भौतिक वासनाएं। आखिर मुट्ठी जितना दिल इतने झटके और हमले कब तक सह सकता है? अपने बच्चों को उनका बचपन और युवाओं को उनकी जवानी वापस लौटाइए। विकास के लिए उन्हें प्रेरित तो कीजिए पर इस आधार पर नहीं कि ” मेरा नाम करेगा रोशन, जग में मेरा राजदुलारा”।
अपना नाम आप स्वयं रोशन कीजिए। नन्हे बालक के छोटे कंधों को इतना बोझिल और हृदय को इतना बेचैन मत कीजिए कि कंधे जवानी में बूढ़े हो जाएं और हृदय धड़कनें को तरस जाए। यदि युवा लोगों में हृदय रोग कम करने की चाहत है तो धरती पर बचपन को वापिस लाना होगा और बचपन महज गणित के आंकड़े नहीं एक जीवनशैली है जिसमें तनाव नहीं बल्कि आश्चर्य, विस्मय, उत्सुकता, अन्वेषण ( एक्सप्लोरेशन) और आनंद का मिश्रण होता है ताकि भविष्य के जीवन को एक दृढ़ नींव मिले।
यह लेख जयपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर रामावतार शर्मा की ओर से लिखा गया है।