उदयपुर न्यूज़: खेरोदा गांव में पंचों के तानाशाही फैसले ने एक परिवार को समाज से पूरी तरह अलग-थलग कर दिया।
फर्नीचर कारोबारी मांगीलाल सुथार और उनके परिवार को गांव के लेन-देन, बातचीत और सहयोग से वंचित कर दिया गया। इतना ही नहीं, जो भी परिवार की मदद करेगा, उस पर 51 हजार रुपये का जुर्माना लगाने की धमकी दी गई।
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क्या है पूरा मामला?
गांव के मांगीलाल सुथार के बेटे ललित सुथार के मुताबिक, उनके परिवार का यह बहिष्कार 3 बिस्वा जमीन के विवाद के चलते किया गया है। गांव के ही भैरूलाल और पूर्व सरपंच दिनेश जणवा का दावा है कि यह जमीन उनके पूर्वजों ने मांगीलाल के परिवार को बेची थी। हालांकि, उनके पास इसका कोई वैध दस्तावेज नहीं है। बावजूद इसके, वे मांगीलाल से इस जमीन की रजिस्ट्री कराने का दबाव बना रहे हैं।
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12 जनवरी को इस मुद्दे पर विवाद हुआ, जिसके बाद 25 जनवरी को गांव में पूर्व सरपंच के भाई द्वारा एक सभा बुलाई गई। इस अवैध सभा में समाज के ठेकेदारों ने एकतरफा फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि कोई भी ग्रामीण मांगीलाल और उनके परिवार से न तो कोई लेन-देन करेगा और न ही उनसे बातचीत करेगा। इस फरमान का उल्लंघन करने वाले पर 51 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
कैसे बिगड़ रहे हालात?
ललित सुथार का कहना है कि इस सामाजिक बहिष्कार से उनका फर्नीचर का काम पूरी तरह ठप हो गया है। गांव की दुकानों से उन्हें सामान नहीं मिल रहा, जिससे परिवार को राशन तक के लिए 7 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। ग्रामीण उनसे बात करने से भी डर रहे हैं।
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गांव के प्रतिनिधियों की सफाई
खेरोदा गांव के उप सरपंच लक्ष्मी लाल का कहना है कि मांगीलाल के परिवार पर सुनाए गए फैसले में गांव के प्रतिनिधियों की कोई भूमिका नहीं है।
उन्होंने कहा कि परिवार से बातचीत हो रही है और गांव के लोग भी उनसे संपर्क में हैं। उनका यह भी कहना था कि यह जमीन विवाद पुराना है और इस संबंध में कोई ठोस दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। इसलिए, दोनों पक्षों को आपस में बैठकर मामले को सुलझाना चाहिए।
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पुलिस में दर्ज हुई शिकायत
परिवार ने 4 फरवरी को खेरोदा थाने में इस मामले की शिकायत दर्ज करवाई। अब यह मामला कानूनी रूप ले चुका है और प्रशासन से उम्मीद की जा रही है कि इस तरह के तानाशाही फरमान पर सख्त कार्रवाई होगी।
गैरकानूनी फरमानों पर कब लगेगी रोक?
समाज के ठेकेदारों द्वारा इस तरह के अन्यायपूर्ण और असंवैधानिक फैसले कोई नई बात नहीं हैं। इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि कब तक निर्दोष लोग सामाजिक बहिष्कार और दबाव की राजनीति का शिकार होते रहेंगे?
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