Wednesday, July 2, 2025
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डीग में मिली 5500 साल पुरानी सभ्यता, सरस्वती नदी से जुड़ाव के संकेत

डीग के बहज गांव में चल रही खुदाई में ऐतिहासिक कामयाबी मिली है। इस खुदाई में एक प्राचीन शहर के अवशेष, हजारों साल पुरानी सभ्यताओं की परतें और गुप्त काल का एक नरकंकाल सामने आया है।

यह खोज भारतीय इतिहास को एक नया आयाम दे सकती है, क्योंकि यहां मिली सभ्यता को वैदिक काल में वर्णित सरस्वती नदी से जोड़कर देखा जा रहा है।

सरस्वती नदी के किनारे बसा था प्राचीन नगर- 

ASI की रिपोर्ट के अनुसार, खुदाई में 23 मीटर गहराई तक पहुंचने के बाद एक सूखी नदी का प्रवाह तंत्र मिला है, जिसे ऋग्वेद में वर्णित सरस्वती नदी का प्राचीन चैनल माना जा रहा है। इसी के पास एक सुनियोजित नगर की संरचनाएं – जैसे सड़कें, नालियां, परतदार दीवारें और खंदकें – सामने आई हैं।

पांच सभ्यताओं की मिली परतें-

खुदाई में गैरिक संस्कृति, चित्रित धूसर संस्कृति, शृंगकाल, कुषाणकाल, गुप्तकाल और मौर्यकाल के साक्ष्य मिले हैं। मिट्टी से बनी मूर्तियां, मिट्टी के खंभों वाली इमारतें, भट्टियां और यज्ञ कुंड दर्शाते हैं कि यह स्थल प्राचीन धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा होगा।

नरकंकाल और पुरातन ब्राह्मी लिपि-

गुप्त काल (करीब 1700 वर्ष पूर्व) के एक नरकंकाल को शोध के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) भेजा गया है। वहीं, खुदाई से प्राप्त ब्राह्मी लिपि में अंकित सिक्के व मुहरें भारतीय उपमहाद्वीप में लिपि के सबसे पुराने उदाहरण हो सकते हैं।

तीन हजार साल पुरानी मूर्तियां और औजार – 

इस साइट से ईसा पूर्व 1000 वर्ष की मिट्टी की मूर्तियां, अधपकी मुहरें, चांदी-तांबे के सिक्के, आभूषण, लोहे और हड्डी के औजार भी बरामद हुए हैं। ये सभी वस्तुएं तत्कालीन जीवन की समृद्धता का परिचय देती हैं।

वैदिक परंपरा के प्रमाण: शिव-पार्वती व यज्ञ कुंड-

खुदाई में शिव-पार्वती की मूर्तियां, 15 यज्ञ कुंड, मातृदेवी की मूर्तियां और पूजा पद्धति से जुड़ी अन्य वस्तुएं मिली हैं, जो वैदिक कालीन धार्मिक परंपराओं से जुड़ाव दिखाती हैं।

खुदाई का दूसरा चरण पूर्ण, रिपोर्ट संस्कृति मंत्रालय को-

खुदाई का दूसरा चरण अक्टूबर 2024 से जून 2025 तक चला, जो अब पूरा हो चुका है। बरसात के कारण साइट को सुरक्षित रूप से बंद कर दिया गया है। इस ऐतिहासिक खोज की रिपोर्ट भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय को सौंप दी गई है।

यह खोज न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ती है, जो हमारी सभ्यता की जड़ों को और अधिक गहराई से समझने में मदद करेगी।

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