Thursday, July 17, 2025
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जोधपुर से रिश्वत और काली कमाई का खुलासा, पूर्व एनएचएआई अधिकारी को जेल

जोधपुर में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) चित्तौड़गढ़ के तत्कालीन टेक्निकल मैनेजर सुरेंद्र कुमार सोनी उर्फ एस.के. सोनी को आय से 65.01% अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में जोधपुर की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 4 साल के साधारण कारावास और ₹41.65 लाख के आर्थिक दंड की सजा सुनाई है।

विशेष न्यायाधीश भूपेंद्र कुमार सनाढ्य की अदालत ने यह फैसला विस्तृत सुनवाई के बाद सोमवार को सुनाया। फैसले के बाद सोनी को सीधे जोधपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया।

रिश्वत कांड से शुरू हुआ था मामला-

उदयपुर के गुलाब बाग रोड स्थित महाराजा अपार्टमेंट निवासी सुरेंद्र कुमार सोनी को सीबीआई ने 29 अप्रैल 2013 को 3 लाख रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया था।

यह रिश्वत शिकायतकर्ता के 30.46 लाख रुपए के बिल की मंजूरी दिलवाने के बदले मांगी गई थी। इसके लिए सोनी ने कुल 3.49 लाख रुपए की डिमांड की थी। सीबीआई ने ट्रैप कार्रवाई कर उसे पकड़ लिया था।

पहले रिश्वत मामले में दोषी, अब आय से अधिक संपत्ति में भी सजा-

सीबीआई ने 28 जून 2013 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धाराओं 7, 11, 13(1)(A)(D) और 13(2) के तहत चार्जशीट दायर की थी। इस मामले में 30 जून 2016 को जोधपुर सीबीआई कोर्ट ने सोनी को दोषी करार देते हुए 6 साल की कठोर कैद और ₹50,000 जुर्माने की सजा सुनाई थी।

उसी दौरान सीबीआई ने जब संपत्ति की जांच की तो पाया गया कि सोनी ने अपनी वैध आय से 116% अधिक संपत्ति अर्जित की थी। इसके आधार पर 30 जून 2016 को ही आय से अधिक संपत्ति का एक अलग मामला भी दर्ज किया गया।

कोर्ट में रखा गया दोनों पक्षों का पक्ष-

सीबीआई की ओर से विशेष लोक अभियोजक भगवानसिंह भंवरिया ने मजबूत पैरवी की, वहीं बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता श्रीधर पुरोहित और रामसुख माली ने बचाव किया।

सोनी की ओर से कोर्ट में उनके परिवार की आमदनी से जुड़े दस्तावेज पेश किए गए। लेकिन अदालत ने 65.01% अधिक आय को आपराधिक कृत्य मानते हुए दोष सिद्ध किया और जुर्माना व सजा सुनाई।

मामला पहुंचा था राज्यसभा तक-

सोनी के रिश्वत प्रकरण को वर्ष 2017 में राज्यसभा में भी उठाया गया था। 10 अप्रैल 2017 को राज्यसभा में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के तत्कालीन राज्य मंत्री मनसुख एल. मंडाविया ने जानकारी दी थी कि सोनी को दोषी पाए जाने के बाद मई 2013 में ही उनके मूल विभाग (पीडब्ल्यूडी, राजस्थान सरकार) को वापस कर दिया गया है।

सीबीआई के डीआईजी ने रखा था विशेष ध्यान-

मामले की गंभीरता को देखते हुए जोधपुर में सीबीआई के डीआईजी राजवीर ने केस की प्रगति पर लगातार नजर बनाए रखी और अधिकारियों को मजबूती से पैरवी के निर्देश दिए।

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