राजस्थान हाईकोर्ट ने झालावाड़ जिले के पीपलोदी गांव में 25 जुलाई को हुए हृदयविदारक हादसे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और केंद्र को स्कूलों की स्थिति में व्यापक सुधार लाने के निर्देश दिए हैं।
हादसे में सरकारी स्कूल की कक्षा की छत और दीवार गिरने से सात मासूमों की मौत हो गई थी, जिनमें दो सगे भाई-बहन भी शामिल थे। कई अन्य छात्र गंभीर रूप से घायल हैं और अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति अनुप कुमार ढांढ की एकल पीठ ने “स्कूल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा एवं भलाई बनाम भारत संघ एवं अन्य” शीर्षक से मामले में सुनवाई शुरू करते हुए कहा कि —
“राज्य सरकार द्वारा शिक्षा प्रणाली को सुधारने के प्रयास हुए हैं, लेकिन बुनियादी ढांचे और व्यवस्था में अब भी गंभीर खामियां हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए स्कूलों में विशेष निवेश और सतत निगरानी की आवश्यकता है, ताकि प्रत्येक बच्चे को सुरक्षित, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।”
पीठ ने कहा कि यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की विफलता का संकेत है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने बताया कि देश के 12 राज्यों में हुए एक सर्वे में यह सामने आया कि —
- 22% स्कूल भवन जर्जर स्थिति में हैं,
- 31% में संरचनात्मक दरारें हैं,
जो सीधे तौर पर छात्रों की जान जोखिम में डालते हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट कहा —
“विद्यालय सिर्फ पढ़ाई का केंद्र नहीं बल्कि भविष्य के नागरिकों को गढ़ने का माध्यम हैं। ऐसे में उनका सुरक्षित होना न केवल आवश्यक है बल्कि आपदा की स्थिति में वे राहत केंद्र की भूमिका भी निभा सकते हैं।”
पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि —
- राज्य के 32% स्कूलों में बिजली कनेक्शन नहीं है,
- लड़कियों के लिए न तो अलग शौचालय हैं और न ही मुफ्त सैनिटरी पैड की सुविधा,
जिसके कारण लड़कियों को अस्वस्थ परिस्थितियों में पढ़ाई करनी पड़ती है, शिक्षा में रुकावट आती है और संक्रमण का खतरा बढ़ता है।
पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि —
• राज्य के 50% प्राथमिक स्कूलों में भी बिजली कनेक्शन नहीं है।
• 9% सरकारी स्कूलों में पेयजल सुविधा उपलब्ध नहीं है, जिससे विद्यार्थियों को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उठाने पड़ते हैं।
• 9% स्कूलों में बालक शौचालय और 10% में बालिका शौचालय नहीं हैं, जिससे विशेष रूप से किशोरियों की शिक्षा प्रभावित होती है।
• लड़कियों के लिए न तो अलग शौचालय हैं और न ही मुफ्त सैनिटरी पैड की सुविधा, जिसके कारण उन्हें अस्वस्थ परिस्थितियों में पढ़ाई करनी पड़ती है। इससे पढ़ाई में रुकावट आती है और UTI, ब्लैडर फूलना व टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ता है।
• केवल 30% स्कूलों में कंप्यूटर सुविधा उपलब्ध है, और सिर्फ 24% में कार्यशील इंटरनेट कनेक्शन है, जिससे डिजिटल शिक्षा की पहुंच सीमित हो रही है।
• हालांकि 74% स्कूलों में पुस्तकालय हैं, परंतु इनमें पुस्तकें और शैक्षणिक संसाधन सीमित हैं, जो पढ़ाई की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
• केवल 9.9% सरकारी स्कूलों में कला-कक्ष (Arts & Crafts Rooms) हैं, जिससे रचनात्मक विकास की संभावनाएं घट रही हैं।
• माध्यमिक स्तर के 50.2% सरकारी स्कूलों में ही विज्ञान प्रयोगशालाएं उपलब्ध हैं, जो विज्ञान शिक्षा में व्यावहारिकता की कमी को दर्शाता है।
• केवल 8.8% सरकारी स्कूलों में ही सौर पैनल लगे हैं, जिससे ऊर्जा आपूर्ति में स्थायित्व की कमी बनी रहती है।
• दिव्यांग बच्चों के लिए अनुकूल शौचालय केवल 33.2% स्कूलों में हैं, जिनमें से सिर्फ 30.6% ही कार्यशील हैं।
• रैंप तो कई स्कूलों में बने हैं, लेकिन हैंडरेल जैसी आवश्यक सुरक्षा सुविधाएं 47% से अधिक स्कूलों में नहीं हैं।
• राजस्थान में महिला साक्षरता दर मात्र 52.66% है, जिसे कोर्ट ने सीधे बुनियादी सुविधाओं की कमी से जोड़ा और कहा कि यह आंकड़ा देश के सबसे बड़े राज्य के लिए चिंताजनक है।
• महात्मा गांधी इंग्लिश मीडियम स्कूल योजना के तहत राज्य सरकार ने 3,737 स्कूलों को परिवर्तित किया, लेकिन इनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षक उपलब्धता और विद्यार्थियों की रुचि में गिरावट जैसी गंभीर समस्याएं सामने आई हैं।
इसके अलावा कोर्ट ने ये गंभीर चिंताएं भी जताईं —
- शारीरिक शिक्षा की अनदेखी,
- स्कूलों में खेल सामग्री और खेल समय का अभाव,
- पुस्तकालय, पीने के पानी व दिव्यांग छात्रों के लिए आवश्यक सुविधाओं की कमी,
- 40,000 से अधिक निजी स्कूलों द्वारा दिव्यांगजनों के अनुकूल ढांचा न देने पर जुर्माना,
जो दर्शाता है कि सरकारी ही नहीं, निजी स्कूल भी बुनियादी ढांचे की अनदेखी कर रहे हैं।
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21(A) का हवाला देते हुए कहा —
“हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार है, लेकिन जब तक स्कूल सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक यह अधिकार अधूरा है। राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है, फिर भी साक्षरता दर, विशेष रूप से महिलाओं में, बेहद कम बनी हुई है।”
हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को तुरंत प्रभाव से निम्न कदम उठाने के निर्देश दिए —
- सभी स्कूलों का सुरक्षा ऑडिट,
- शौचालय, पीने का पानी, पुस्तकालय, बिजली, सैनिटरी पैड मशीनें जैसी मूलभूत सुविधाओं की सुनिश्चितता,
- झालावाड़ हादसे के पीड़ितों को मुआवजा व मुफ्त उपचार,
- ऑनलाइन शिकायत निवारण पोर्टल,
- जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई,
- जिला स्तरीय निगरानी समितियों का गठन।
अगली सुनवाई 1 अगस्त 2025 को होगी और तब तक सरकारों को पालना रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।