नपुंसकता और थायराइड जैसी बीमारियों का मुख्य कारण है रिफाइंड नमक में मिलाया जाने वाला जहरीला पोटेशियम फेरोसाइनाइड और ज्यादा आयोडीन
राजस्थान में होता है 23लाख मैट्रिक टन नमक उत्पादन
Spotnow @ जयपुर : नपुंसकता, उच्च रक्तचाप, थायराइड की बीमारियां बढाने में पैकेटबंद रिफाइंड नमक भी एक प्रमुख कारण है। रिफाइंड नमक के साथ हम जानेलवा
पोटेशियम फेरोसाइनाइड के साथ-साथ लैड का उपभोग कर रहे है। इससे कैंसर जैसी भयानक बीमारियां भी बढ रही है। नमक पर लागू किए गए बरसों पुराने नियम इसका प्रमुख कारण है।
जी हां, बाजार में उपलब्ध रिफाइंड नमक में आज भी करीब तीस साल पुराने
प्रति एक किलो नमक में पोटेशियम फेरोसाइनाइड की न्यूनतम मात्रा 10मिलीग्राम है। जो हमारे शरीर के लिए बेहद नुकसानदायी है।
खास बात यह भी है कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की ओर से भी पोटेशियम फेरोसाइनाइड को खाद्य पदार्थ में मिलाने की श्रेणी में रखा गया है। जबकि पिछले दिनों नमक के सेम्पल की अमेरिकन जांच रिपोर्ट के मुताबिक इस जहरीले तत्व का अधिक उपभोग विभिन्न बीमारियां पैदा कर रहा है।
नमक को टिकाऊ बनाने के लिए डाला जाता है यह जहर
नमी के कारण रिफाइंड नमक के दाने कुछ समय में आपस में चिपक कर जम जाते है। नमक के दानों को लंबे समय तक खुला-खुला रखने के लिए रिफाइंड नमक में पोटेशियम फेरोसाइनाइड मिलाया जाता है। जिसकी बीआईएस और एफएसएसएआई की ओर से न्यूनतम मात्रा 10 माइक्रोग्राम प्रतिकिलो निर्धारित है।
नहीं है साइनाइड जांचने की लैब-
एक आरटीआई की रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार पूरे देश की अधिकांश लैबों में नमक में शामिल पोटेशियम फेरोसाइनाइड की मात्रा जांचने के लिए संसाधन ही नहीं है। जिसके चलते इस जहर की मात्रा की जांच नहीं होती और यह खाने के साथ लोगों के शरीर में पहुंच रहा है। राजस्थान की नमक रिफाइनरियों में लैब जांच में केवल सोडियम क्लोराइड, केल्शियम, मेग्निशियम, इंसोलेबल, आद्रता, आयरन की जांच की जाती है।
23 लाख मेट्रिक टन उत्पादन-
पूरे देश में जहां प्रतिवर्ष 230लाख मैट्रिक टन नमक का उत्पादन होता है वहीं अकेले राजस्थान में प्रतिवर्ष करीब 23 लाख मेट्रिक टन का उत्पादन होता है। जिसमें में करीब अस्सी फीसदी नमक रिफाइंड होकर खाने के काम आता है। प्रदेश में सर्वाधिक नमक का उत्पादन नावां क्षेत्र में किया जाता है जो प्रतिवर्ष करीब 19 लाख मेेट्रिक टन है। नमक को रिफाइंड बनाने के लिए प्रदेश में सर्वाधिक नमक रिफाइनरियां भी नावां में संचालित हो रही है।
80 के दशक तक साधारण नमक
भारत में 80 के दशक तक खारड़ों से उत्पादित होने वाला साधारण नमक ही घरों में पीसकर उपभोग किया जाता था। जिसमें प्राकृतिक पानी में मौजूद सभी तत्व शामिल होते थे लेकिन इसके बाद पैकेट में बंद रिफाइंड नमक का उपभोग बढने लगा और लोग यह धीमा जहर उपभोग करने लगे।
खराब होते हैं गूर्दे-
नमक में मिलाया जाने वाला पोटेशियम फेरासाइनाइड शरीर के लिए नुकसानदायी तो है ही इससे धीरे धीरे गूर्दे भी खराब होने लगते है। सरकार को पोटेशियम फेरोसाइनाइड के उपयोग पर नियंत्रण लगाना चाहिए।
डॉ. रामरतन यादव
प्रोफेसर
सरकारी मेडिकल कॉलेज, सीकर।