Health news: Psoriasis सोरायसिस की विस्तृत जानकारी लाभदायक हो सकती
पढ़ें क्या कहते है वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर रामावतार शर्मा
सोरायसिस एक कष्टदायक रोग है जो पीड़ित व्यक्ति और उसके परिवार को जीवनपर्यन्य मानसिक और शारीरिक अशांति दे सकता है। चूंकि यह एक ऑटो इम्यून रोग है तो इससे पूर्ण मुक्ति अभी तक तो संभव नहीं है हालांकि विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के प्रैक्टिशनर रोग मुक्ति का आश्वासन दे कर काफी धन अर्जन करते रहते हैं।
हमें सबसे पहले तो यह जानना चाहिए कि सोरायसिस रोग होता क्या है। इस रोग में शरीर के विभिन्न हिस्सों पर मोटी, घनी पपड़ी जैसी फलक ( प्लाक ) बनने लगती हैं जिनमें तीव्र खुजली होती है और ये प्लाक काफी कष्टदायक भी हो जाते हैं। इन प्लाक में प्रज्वलन ( इन्फ्लेमेशन ) होने के कारण दर्द भी हो सकता है।
इस बीमारी के कारण पीड़ित व्यक्ति का आत्मविश्वास कम हो सकता है तथा चिड़चिड़ाहट भी स्वभाव का दैनिक हिस्सा हो सकती है।
यहां एक स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि यह सब कैसे होता है? किसी वायरस संक्रमण या अज्ञात कारणों से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में ऑटो इम्यूनिटी विकसित हो जाती है। ऑटो इम्यूनिटी में शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में विकार आ जाता है और वह रक्षा की जगह नुकसान करने लगती है क्योंकि वहां शरीर की कुछ विशेष कोशिकाओं को शरीर की बजाय बाहर का हिस्सा माना जाने लगता है।
अपने को पराया मान कर शरीर का रक्षा तंत्र उसे नष्ट करने के लिए उस पर लगातार हमले करने लगता है ताकि शरीर का वह हिस्सा नष्ट हो जाए। सोरायसिस में ऐसा हिस्सा त्वचा के कुछ विशिष्ट हिस्से होते हैं। ये हिस्से ज्यादातर मामलों में पेट, कुल्हे, सिर आदि जगह होते हैं हालांकि सोरायसिस शरीर में कहीं भी हो सकती है।
ऑटो इम्यूनिटी में त्वचा की कुछ कोशिकाएं लगातार बनती रहती हैं, उनका उत्पादन रुकता नहीं है। ऐसा होने से त्वचा की मोटी पपड़ियां बनने लगती हैं जो कोई एक महीने बाद झड़ने लगती हैं। इस झड़ने के दौर के बाद पीड़ित व्यक्ति एक महीने से एक साल तक ठीक रह सकता है परंतु रोग फिर वापिस आ सकता है।
ऐसा जीवनपर्यंत होता रहता है। मानसिक या शारीरिक तनाव, त्वचा की कोई एलर्जी, किसी कीड़े का काटना, सुखा ठंडा मौसम, कोई संक्रमण, दवा या हार्मोन परिवर्तन इस रोग को सुषुप्त अवस्था से जाग्रत कर सकते हैं इसलिए इन सब मामलों में सावधान रहने की आवश्यकता होती है।
जिन लोगों के पेट का कोई रोग हो, आनुवंशिकता हो या मधुमेह जैसी कोई बीमारी हो उन लोगों में सोरायसिस अधिक जागृत होती है। बीड़ी, सिगरेट, शराब और मोटापा भी इस रोग को सक्रिय कर सकते हैं इसलिए ध्यान रखना चाहिए। चूंकि रोगमुक्ति संभव नहीं होती है तो लोग विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते रहते हैं, किसी अल्पावधि लाभ को बढ़ा चढ़ा कर बताते रहते हैं जिसके फलस्वरूप भ्रांतियां फैलती रहती हैं।
समझदारी किसी एक अनुभवी चिकित्सक की समय समय पर राय ले कर रोग को नियंत्रित रखने में है वरना समय के साथ हड्डी, जोड़, मांसपेशियां आदि प्रभावित हो सकती हैं। सोरियासिस के रोगी अवसाद, बेचैनी और चयापचन ( मेटाबॉलिज्म ) संबंधी व्याधियों से आसानी पूर्वक ग्रसित हो सकते हैं इस बात का खयाल रखना उचित है।
सोरायसिस संक्रामक रोग नहीं है, एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलता है। शरीर में विटामिन ए, डी एवम् ई की कमी नहीं होनी चाहिए।
योग और ध्यान फायदेमंद होते हैं। वजन पर नियंत्रण, तनाव मुक्त जीवनशैली और नम त्वचा आदि रोग को लंबे समय तक सुषुप्त अवस्था में रखने में सहायक होते हैं।