Friday, November 1, 2024
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Spotnow News: शारदीय नवरात्रि कल से, जाने तिथि और शुभ मुहूर्त

Spotnow News: जयपुर. हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 3 अक्टूबर दिन गुरुवार से हो रहा है। ऐसे में नवरात्रि को लेकर तमाम तैयारियां शुरू हो गई हैं। हर ओर भक्तिमय माहौल देखने को मिल रहा है। मां दुर्गा के स्वागत में लोग घरों और मंदिरों को सुंदर सजा रहे हैं, साथ ही बाजारों में भी अलग रौनक देखने को मिल रही है। गौरतलब है कि हिंदू धर्म में नवरात्रि के 9 दिन किसी उत्सव की तरह मनाए जाते हैं। इन दिनों भक्त देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना करते हैं और मां के नाम का उपवास भी रखते हैं। हालांकि, किसी भी त्योहार की तरह ही नवरात्रि की शुरुआत भी लोग एक-दूसरे को ढेरों बधाइयां देकर करते हैं। 

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मां दुर्गा के 9 स्वरूप

नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। इनमें पहला दिन मां शैलपुत्री, दूसरा मां ब्रह्मचारिणी, तीसरा मां चंद्रघंटा, चौथा मां कूष्मांडा, पांचवां मां स्कंध माता, छठा मां कात्यायिनी, सातवां मां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां मां सिद्धिदात्री को समर्पित है। इस साल शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर, गुरुवार से आरंभ हो रही है और इसका समापन 12 अक्टूबर, शनिवार के दिन होगा।

तिथि और शुभ मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि के दिन अश्विन मा​ह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि होगी। शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ इंद्र योग और हस्त नक्षत्र में हो रहा है। अश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि 2 अक्टूबर को देर रात 12:18 बजे से लेकर 4 अक्टूबर को तड़के तड़के 02:58 बजे तक है। उदयातिथि के आधार पर शारदीय नवरात्रि का पहला दिन 3 अक्टूबर को है। कलश स्थापना के लिए सुबह 6:15 से 7:22 तक और दोपहर में 11:46 से 12:33 तक का शुभ मुहूर्त है।

नवरात्रि के पहले दिन घट (कलश) स्थापना की जाती है। इसे माता की चौकी बैठाना भी कहा जाता है। इसके लिए दिनभर में दो ही मुहूर्त रहेंगे।

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नवरात्री का आध्यात्मिक महत्व

सवंत्सर (वर्ष) में चार नवरात्र होते है। चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी पर्यंत नौ दिन नवरात्र कहलाते है। इन चार नवरात्रों में दो गुप्त और दो प्रकट, चैत्र का नवरात्र वासंतिक और आश्विन का नवरात्र शारदीय नवरात्र कहलाता है। वासंतिक नवरात्र के अंत में रामनवमी आती है और शारदीय नवरात्र के अंत में दुर्गा महानवमी इसलिए इन्हें राम नवरात्र और देवी नवरात्र भी कहते है। किंतु शाक्तों की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। इसी कारण बंगाल में दुर्गा पूजा मुख्यतः शारदीय नवरात्र में ही होती है। ऋृग्वेद में शारदीय शक्ति दुर्गा पूजा का उल्लेख मिलता है। बंगाल में विशाल प्रतिमाओं में सप्तमी, अष्टमी और महानवमी को दुर्गापूजा होती है।

जगन्माता को यहां कन्या रूप से अपनाया गया है, मानो विवाहिता पुत्री पति के घर से पुत्र सहित तीन दिन के लिए माता-पिता के पास आती है। मां दस भुजाओं में दस प्रकार के आयुध धारण कर शेर पर सवार होकर, महिषासुर कें कंधे पर अपना एक चरण रखे त्रिशूलद्वारा उसका वध कर रही होती है। शारदीय शक्ति पूजा को विशेष लोकप्रियता त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम चंद्र के अनुष्ठान से भी मिली। देवी भागवत में भगवान श्रीरामचंद्र द्वारा किए गए शारदीय नवरात्र के व्रत तथा शक्ति पूजन का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, श्रीराम की शक्ति पूजा सम्पन्न होते ही जगदंबा प्रकट हो गई थीं। शारदीय नवरात्र के व्रत का पारण करके दशमी के दिन श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। रावण का वध करके कार्तिक कृष्ण अमावस्या को श्रीरामचंद्र भगवती सीता को लेकर अयोध्या लौट आए।

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