अजमेर दरगाह प्रकरण: अजमेर दरगाह के विवाद पर पहली बार शुक्रवार को दरगाह के दीवान जैनुअल आबेदीन ने अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा कि जहां 800 साल से कच्ची मजार है वहा अब मंदिर कैसे हो सकता है।
जैनुअल आबेदीन ने कहा कि- दरगाह शरीफ का इतिहास 800 साल पुराना है। गरीब नवाज जब तशरीफ़ लाए थे उस जमाने में यह कच्छा मैदान था, इसी के अंदर उनकी कब्र थी। इस बात से आप लोग अंदाजा लगा सकते हैं कि जहां कब्र होती है, वह जगह कच्ची होगी। अब जहां डेढ़ सौ साल तक कच्चा मजार बना हुआ था। वहां बिल्कुल भी पक्का मरमत नहीं की गई होगी। तो अब उसके नीचे मंदिर कैसे हो सकता है?
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हरविलास शारदा की किताब पर बोले दरगाह दीवान
दीवान ने कहा कि- जिस किताब का हवाला देकर अजमेर दरगाह को मंदिर बताया जा रहा है। उसी किताब के पेज नंबर 92 पर साफ शब्दों में लिखा है कि यह किताब 1910 में लिखी गई थी, और 1920 में उसका पब्लिकेशन फिर किया गया था। और दरगाह दीवाने यह भी कहा कि किताब के लेखक हरविलास शारदा कोई इतिहासकार नहीं बल्कि एक पढ़े-लिखे व्यक्ति थे।
किताब में लिखा है कि ऐसा सुना जाता है, ऐसा कहा जाता है इसका अर्थ है कि लेखक ने बस अपने मन की बात किताब में लिखी है। और इनका जवाब कानूनी रूप से हमारे एडवोकेट पैनल की तरफ से कोर्ट के अंदर दिया जाएगा।
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1950 में गवर्नमेंट आफ इंडिया ने की थी, दरगाह की जांच
दरगाह दीवान कहा कि 1950 में भी दरगाह पर जांच की जा चुकी है। उस समय की तत्कालीन भारत सरकार ने इलाहाबाद कोर्ट के न्यायाधीश गुलाम हसन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग ने दरगाह के माल प्रशासन को लेकर जांच की थी। उन्होंने यहां आकर खोजबीन करके जानकारी जुटाना के बाद डॉक्यूमेंट भी चेक किए थे। उन्होंने जो रिपोर्ट तैयार की, वह अब भी भारत सरकार के पास है।
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अजमेर दरगाह प्रकरण में पूर्व मुख्यमंत्री का बयान
अशोक गहलोत ने कहा कि- जिस दरगाह में देश और विदेश से हिन्दू और मुस्लिम दोनों आते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या किसी अन्य पार्टी का नेता जवाहरलाल नेहरू के समय से सभी यहां चादर चढ़ाने आते हैं। अब आप लोग यहां चादर भी चढ़ा रहे हो और आपकी पार्टी के लोग कोर्ट में केस भी चला रहे हैं, यह तो लोगों को गुमराह करने वाली बात है…पूरी खबर पढ़ें