Spotnow news: सुप्रीम कोर्ट ने एक दलित नाबालिग से छेड़छाड़ के मामले में अहम और कड़ा फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी समझौते के आधार पर नाबालिग के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया कि ऐसे मामलों में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई को रोकने या खत्म करने के लिए समझौता एक उचित आधार नहीं हो सकता। इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को भी रद्द कर दिया। जिसमें 2022 में एक स्कूल शिक्षक पर छेड़छाड़ का मामला खत्म कर दिया गया था।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि दोनों पक्षों में समझौता होने से आरोपी का दोष सिद्ध होने की संभावना कम हो सकती है। लेकिन इस कारण से आपराधिक कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत कोई भी समझौता गंभीर आपराधिक मामले को खत्म करने के लिए आधार नहीं बन सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि- अपराधी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई से पीड़िता को कुछ राहत मिल सकती है और यह संदेश भी जाता है कि कानून अपराधियों को बख्शता नहीं है। कोर्ट ने इस मामले में प्रसिद्ध अमेरिकी कवि एच. डब्ल्यू. लॉन्गफेलो की एक प्रसिद्ध पंक्ति का हवाला देते हुए कहा कि एक फटी हुई जैकेट को तो ठीक किया जा सकता है।
लेकिन एक बच्चे का टूटा हुआ दिल कभी नहीं जोड़ा जा सकता। इसका मतलब यह था कि इस तरह के अपराध न केवल पीड़िता की मानसिक स्थिति पर गंभीर असर डालते हैं। बल्कि पूरे परिवार की खुशहाल जिंदगी पर भी असर डाल सकते हैं।
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जानकारी के अनुसार- यह घटना 6 जनवरी 2022 की है। जब राजस्थान के गंगापुर में एक स्कूल में 11वीं कक्षा की छात्रा से उसके शिक्षक ने कक्षा में अकेला पाकर छेड़छाड़ की थी। लड़की ने अपनी मां को घटना के बारे में बताया और फिर उसके पिता ने 8 जनवरी को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद आरोपी शिक्षक ने दबाव डालकर पीड़िता के पिता से समझौता कर लिया। इसी आधार पर राजस्थान हाईकोर्ट ने 4 फरवरी 2022 को आरोपी शिक्षक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया था।
समाजसेवी रामजीलाल बैरवा और जगदीश प्रसाद गुर्जर ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि यदि आरोपी को बख्शा गया। तो इसका समाज पर गहरा असर पड़ेगा। खासकर दलित समुदाय की लड़कियों पर, जो शिक्षा प्राप्त करने से वंचित हो सकती हैं।
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अतिरिक्त महाअधिवक्ता शिवमंगल शर्मा ने भी इस पर कहा कि बच्चों से जुड़े यौन अपराध केवल व्यक्तिगत मामले नहीं होते। बल्कि इनका समाज पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर हाईकोर्ट का फैसला कायम रखा जाता तो इससे समाज में गलत संदेश जाता।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में न्याय का पक्ष लेते हुए आरोपी के खिलाफ कार्रवाई को आगे बढ़ाने का आदेश दिया। ताकि न सिर्फ पीड़िता को न्याय मिल सके। बल्कि समाज को भी यह संदेश जाए कि ऐसे अपराधियों को कानून से नहीं बख्शा जा सकता।
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