Spotnow news: राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के नेता हनुमान बेनीवाल ने खींवसर उपचुनाव के दौरान कहा कि अगर उनकी पार्टी इस चुनाव में हार जाती है। तो उनका 20 साल का राजनीतिक संघर्ष खत्म हो जाएगा। इस बार उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल खींवसर सीट से चुनावी मैदान में हैं।
हनुमान बेनीवाल को अपनी सत्ता खोने का डर सता रहा है। जैसे-जैसे उपचुनाव नजदीक आ रहे हैं। वे अपने भावुक बयानों से जनता को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने उम्मीदवारों को चुनने में काफी सोच-समझकर निर्णय लिया है। इधर कांग्रेस ने भी रतन चौधरी को मैदान में खड़ा करके मुकाबले को रोचक बना दिया है। अब उपचुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई है। बाजार में परिणाम के भी कयास लगाए जाने लगे है। सट्टा बाजार के सौदेबाजी पर नजर डाली जाए तो यहां भी बेनीवाल की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं बताई जा रही है।
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आरएलपी के हनुमान बेनीवाल ने इस बार अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतारा है। अब यह देखना होगा कि क्या जनता उनकी पत्नी पर वही विश्वास करेगी जो हनुमान बेनीवाल पर करती थी, यह तो समय ही बताएगा।
बेनीवाल ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि- इस बार चुनाव जीतना बेहद जरूरी है। अगर RLP विधानसभा में नहीं गई, तो लोग कहेंगे कि हनुमान ने 20 साल मेहनत की लेकिन अंत में खींवसर की सीट भी खो दी। उन्होंने यह भी कहा कि वह अगले चार साल तक बजरी माफियाओं के खिलाफ लड़ाई जारी रखना चाहते हैं। इसलिए पार्टी की जीत सुनिश्चित करना आवश्यक है।
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47 साल की राजनीतिक विरासत
हनुमान बेनीवाल एक राजनीतिक परिवार से आते हैं, जिसकी विरासत 47 साल पुरानी है। उनके पिता रामदेव बेनीवाल दो बार विधायक रहे हैं। उन्होंने 1977 में कांग्रेस के टिकट पर मुंडवा सीट से चुनाव जीता और फिर 1985 में लोकदल के तहत विधानसभा में पहुंचे। 2008 में परिसीमन के बाद हनुमान पहली बार भाजपा के टिकट पर खींवसर से विधायक बने।
राजनीतिक संघर्ष और टकराव
हनुमान बेनीवाल की राजनीतिक यात्रा कई उतार-चढ़ाव से भरी रही है। 2013 में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ उनके संघर्ष के चलते उन्हें भाजपा से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और खींवसर से जीत हासिल की। यह उनकी राजनीतिक चतुराई को दर्शाता है, जिससे वे हमेशा चर्चा में बने रहे हैं। हालांकि इसके बाद उनके खास सहयोगी रेवतराम डांगा उनका साथ छोड़कर भाजपा में चले गए और वह भाजपा की तरफ से खींवसर से प्रत्याशी है। त्रिकोणीय मुकाबले में यह सीट पेंच में फंसी हुई है। यह बेनीवाल का गढ़ बताया जाता है, जहां इस बार सेंधमारी का प्रयास हो रहा है।
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हनुमान बेनीवाल का बयान इस बात का संकेत है कि खींवसर उपचुनाव उनके राजनीतिक भविष्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक सीट का मुद्दा नहीं है। बल्कि उनके 20 साल के संघर्ष की कहानी का एक अहम हिस्सा है। अब देखना होगा कि उनकी पार्टी इस चुनौती को कैसे स्वीकार करती है और क्या वे अपनी मेहनत को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचा पाते हैं।