राजस्थान के शैक्षणिक हलकों में उस समय हड़कंप मच गया जब 11वीं और 12वीं कक्षा में पढ़ाई जा रही इतिहास की एक किताब को लेकर सियासी बवाल खड़ा हो गया। सरकार ने विवाद को गंभीरता से लेते हुए तुरंत इस किताब पर रोक लगा दी।
नेहरू-गांधी परिवार को दी गई प्रमुखता
यह किताब “आज़ादी के बाद का स्वर्णिम भारत” शीर्षक से राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई जा रही थी जिसमें कांग्रेस नेताओं, विशेषकर नेहरू-गांधी परिवार को प्रमुखता दी गई थी। किताब के कवर से लेकर अंदरूनी पन्नों तक कांग्रेस के 15 नेताओं की तस्वीरें छपी थीं
जबकि विपक्षी दलों और खासतौर पर भाजपा नेताओं का उल्लेख या तो बेहद सीमित था या पूरी तरह गायब था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी केवल औपचारिकता के तहत लिखा गया,
जबकि स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले बाबा साहब अंबेडकर, सरदार पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं को लगभग नजरअंदाज कर दिया गया।
मामले की जानकारी सामने आने के बाद शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने इस किताब को “जहर” करार देते हुए तुरंत प्रभाव से इसकी पढ़ाई पर रोक लगा दी। उनका कहना था कि यदि कोई वस्तु गलती से खरीदी गई हो और वह हानिकारक हो, तो उसे केवल पैसे की वजह से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
सरकार ने उठाया सख्त कदम, किताब पर तत्काल बैन
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस किताब के आधार पर परीक्षा में मिले अंक रिजल्ट में शामिल नहीं किए जाएंगे। सरकार करोड़ों के नुकसान को स्वीकारने को तैयार है लेकिन बच्चों को पक्षपातपूर्ण इतिहास नहीं पढ़ाया जाएगा।
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