राजस्थान के प्रतिष्ठित सरिस्का टाइगर रिजर्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। राज्य सरकार द्वारा रिजर्व के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) में बदलाव की अधिसूचना पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी है। यह फैसला न सिर्फ बाघों और जंगलों के संरक्षण के लिहाज़ से अहम है बल्कि इसके सियासी मायने भी गहराते दिख रहे हैं।
सरिस्का टाइगर रिजर्व को लेकर बड़ा फैसला
हाल ही में राजस्थान सरकार ने सरिस्का टाइगर रिजर्व के CTH में संशोधन करते हुए बफर ज़ोन को 42 किलोमीटर तक घटा दिया था। इस फैसले पर विपक्ष ने गंभीर आपत्ति जताई थी। कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने आरोप लगाया कि यह कदम खनन माफिया और व्यवसायिक हितों को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से उठाया गया था।
खासकर टहला क्षेत्र, जहाँ बाघिन ST-27 ने मई 2024 में दो शावकों को जन्म दिया, उसे CTH से बाहर कर बफर ज़ोन घोषित किया गया था जिसे उन्होंने वन्यजीवों के साथ अन्याय बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, खनन गतिविधियों पर भी सख्ती
सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिसूचना को नियम विरुद्ध मानते हुए खारिज कर दिया और कहा कि नए ड्राफ्ट में वैज्ञानिक आधार और पारदर्शिता की कमी है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना अनुमति के सरिस्का में कोई खनन गतिविधि नहीं हो सकती।
जूली ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह न्याय बेजुबानों की दहाड़ है जिसे कोर्ट ने सुना और सरकार के खनन-समर्थक रवैये को नकार दिया।
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