लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एक महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।
इस प्रस्ताव को कुल 146 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया है, जिनमें केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद और विपक्ष के नेता भी शामिल हैं। प्रस्ताव में जस्टिस वर्मा को भ्रष्टाचार के आरोप में उनके पद से हटाने की मांग की गई है।
प्रस्ताव के अनुसार – जस्टिस वर्मा पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं जो न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को प्रभावित करते हैं। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए लोकसभा अध्यक्ष ने न्यायाधीशों की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया के नियमों का गहराई से अध्ययन किया। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीर माना है और इनहाउस जांच प्रक्रिया का पालन किया गया है।
इस मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने भी जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ उठाए गए आरोपों की गंभीरता को देखते हुए एक स्वतंत्र जांच की आवश्यकता जताई गई। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के तहत, भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के अंतर्गत न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया आरंभ की जा सकती है।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि न्यायपालिका में बेदाग चरित्र सबसे महत्वपूर्ण है और किसी भी व्यक्ति के भ्रष्टाचार के आरोप स्वीकार्य नहीं हैं। इस कारण से, उन्होंने इस महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकृति देते हुए जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है।
यह समिति सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंदर मोहन श्रीवास्तव, और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बीवी आचार्य से बनी है। समिति की जांच पूरी होने तक महाभियोग प्रस्ताव लंबित रहेगा और उसके बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
आग और नकदी बरामदगी से उठा विवाद
14 मार्च की शाम को न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर लगी आग के दौरान दमकलकर्मियों को भारी मात्रा में बेहिसाब नकदी मिलने की बात सामने आई थी। बाद में एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें आग में जलती हुई नकदी के बंडल दिखाई दिए। इस घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिन्हें उन्होंने साजिश करार देते हुए खारिज किया।
इसके बाद सीजेआई ने 22 मार्च को तीन सदस्यीय जांच समिति गठित कर इन-हाउस जांच शुरू की थी। जांच शुरू होने के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को वापस उनके मूल न्यायालय इलाहाबाद हाई कोर्ट भेज दिया गया, जहां हाल ही में उन्होंने पुनः पद की शपथ ली। हालांकि, सीजेआई के निर्देश पर उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका, सीजेआई की महाभियोग सिफारिश को माना वैध