Nagaur politics: नागौर. नागौर लोकसभा क्षेत्र में वोटिंग प्रतिशत में भले भी बड़ी गिरावट आई है लेकिन इसका सीधा असर जीत हार को प्रभावित करेगा, यह नहीं कहा जा सकता है। जिसका मुख्य कारण है की पक्ष और विपक्ष के सभी कोर वोटर्स के बूथों पर ही वोटिंग कम हुई है।
राजनीतिक भाषा में जानें कि जिन्हें भाजपा अपना कोर वोटर मानती है 〈ब्राहमण, महाजन, राजपूत, मूल ओबीसी〉 के बूथों पर नजर डाली जाए तो साफ़ है यहां तुलनात्मक मतदान 65 फीसदी रहा है। इसी प्रकार जिन्हें कांग्रेस अपना कोर वोटर मानती है 〈 मुस्लिम, एससी〉 बाहुल्य वाले बूथों पर करीब 55 फीसदी मतदान हुआ है। वोटिंग प्रतिशत को सरल भाषा में समझे तो यह भी आंकडा चुनाव परिणाम को दर्शाने वाले हैं।
Nagaur politics: अब बात करते हैं की नागौर जिले में सर्वाधिक वर्चस्व वाले जाट समाज की तो गांवों में भी वोटिंग कम हुई है। चर्चाओं में है की जाट समाज की ओर से करीब 60 फीसदी मतदान गठबंधन के प्रत्याशी के पक्ष में रहा है और भाजपा प्रत्याशी को करीब 40 फीसदी वोट मिले हैं। ऐसे में मामला कहीं भी एकतरफा नजर नहीं आ रहा है।
spotnow की टीम ने ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया और इसके बाद शहरी क्षेत्रों के बूथवाइज मतदान प्रतिशत और वहां के कोर वोटर्स का आंकलन किया तो सामने आया कि चुनाव कांटे की टक्कर का है। कहीं पर हनुमान बेनीवाल बढ़त ले रहे है तो कहीं ज्योति मिर्धा बड़े मार्जिन से वोट ले रही है। प्रथम दृष्टया नागौर के नावा विधानसभा से ज्योति मिर्धा के पांच अंकों में आगे रहने की संभावना है।
अब बात करते है नागौर की अन्य सीटों की…
नागौर सीट में ज्योति मिर्धा के नागौर विधानसभा में कम वोटिंग जरुर हुई है लेकिन यह वोटिंग हनुमान बेनीवाल की खींवसर सीट से अधिक है। इसी प्रकार विधानसभा चुनावों की तुलना में नागौर की सभी आठ विधानसभा सीटों पर वोटिंग में गिरावट हुई है। पुरे लोकसभा में औसतन 15.06% वोटिंग कम हुई है।
सचिन पायलट समर्थक कांग्रेस विधायक रामनिवास गावड़िया के क्षेत्र परबतसर में 23.69%, मुकेश भाकर की सीट लाडनूं में 18.25% की गिरावट हुई है। नावां में विधानसभा चुनावों की तुलना में 16.36% वोटिंग कम हुई है। नावां में विधानसभा चुनावों में 74.70% वोटिंग हुई थी जो अब घटकर 58.34% रह गई है। निर्दलीय विधायक और वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे यूनुस खान की डीडवाना सीट पर 17.89% कम वोटिंग हुई है।
कम वोटिंग प्रतिशत पर भाजपा चिंतित
आमतौर पर राजस्थान में धारणा है कि विधानसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो सत्ता पक्ष को नुकसान होता है। वहीं लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ता है तो भाजपा को फायदा मिलता है। ऐसे में इस बार पहले चरण की सीटों पर कम वोटिंग ने भाजपा को सोचने पर जरुर मजबूर कर दिया है। हालांकि इसका नुकसान मोटे तौर पर सभी राजनीतिक दलों को होता है लेकिन अभी भाजपा लगातार सत्ता में है तो जाहिर है की बहुमत उधर है।
वोट शेयर का अंतर कम ?
बड़ा सवाल है कि पहले चरण में कम वोटिंग होने से भाजपा और कांग्रेस के बीच वोट शेयर में क्या अंतर रहेगा। सीट जीत-हार का असल खेल वोट शेयर के आंकड़ों में छिपा है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में करीब 24 फीसदी का अंतर रहा। इस कारण कांग्रेस पिछले दो बार से जीरो पर अटकी है। यही कारण है की कांग्रेस ने राजस्थान में रालोपा, माकपा और बाप पार्टी से गठबंधन किया है।
Nagaur politics: आखिर क्यों हनुमान बेनीवाल नहीं पहनते कुर्ता पाजामा ?
Nagaur News: नागौर लोकसभा में कम वोटिंग का नुकसान झेल सकती है भाजपा