Spotnow News: जयपुर. प्रदेश में बछ बारस का त्योहार मनाया गया। इस अवसर पर महिलाओं ने गायों व उनके बछड़ों की पूजा अर्चना कर अपनी संतान की खुशहाली की कामना की।
इस दिन निसंतान महिलाओं ने पूजा के दौरान संतान प्राप्ति की कामना की। महिलाओं ने व्रत व उपवास करते हुए गोपालक, गौशाला आदि जगहों पर जाकर गाय व बछड़े का सामूहिक पूजन किया। इस दौरान महिलाओं ने अपने बच्चों के तिलक लगाकर उन्हें लड्डू भी खिलाए। इसके लिए अनेक स्थानों पर महिलाओं ने सामूहिक पूजन के कार्यक्रम रखे एवं बछ बारस की कथा सुनी। विधिवत पूजा करने के बाद अब दिन भर महिलाएं पर्व के रिवाज के अनुसार खान पान करेंगी। शहर की गौशालो में जाकर महिलाओं ने गायों व बछड़ों की पूजा की।
श्री खाटूश्याम मंदिर के पुजारी ने बताया कि हर वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद भाद्रपद द्वादशी को बछ बारस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन चाकू से सब्जियां नहीं काटी जाती वहीं अंकुरित व मोटे अनाज के पकवान तैयार किए जाते हैं। इस अवसर पर घरों में अंकुरित मोठ, मूंग, चने के व्यंजन, कढ़ी, बाजरे की रोटी, मक्के की रोटी आदि बनाए गए।
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बछ बारस का महत्व
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और पूजन किया था। जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। ऐसी गौमाता की रक्षा करना और उनका पूजन करना हर भारतवंशी का धर्म है। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकें। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवता एवं समस्त तीर्थों का वास है। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है। गौमाता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।
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