Nagaur Politics: नागौर. लोकसभा चुनाव के दौरान जैसे जैसे मतदान की तारीख नजदीक आ रही है वैसे वैसे ही प्रत्याशियों की धडक़नें भी बढऩे लगी है। पिछले दिनों जहां हनुामन बेनीवाल गठबंधन को लेकर थोड़े मायूस नजर आए वहीं ज्योति मिर्धा भी भीतरघात से डर रही है।
ज्योति मिर्धा के बयानों और हनुमान बेनीवाल के बयानों पर नजर डाली जाए तो दोनों को ही भीतरघात का अंदेशा सता रहा है। हालांकि टिकट वितरण और हनुमान बेनीवाल के गठबंधन के बाद जहां सट्टा बाजार में चर्चाओं में हनुमान बेनीवाल की जीत मानी जा रही थी, लेकिन अब लगातार बयानबाजी और भाजपा की आक्रामक रणनीति के चलते ज्योति मिर्धा टक्कर में आ गई है।
Nagaur Politics: सट्टा बाजार में ज्योति मिर्धा की जीत के दावे भी होने लगे है। अब ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो मतदान के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा लेकिन फिलहाल दोनों ही प्रत्याशी अपनी जीत को लेकर संतुष्ट तो नहीं कहे जा सकते। यह भी तय है कि इन चुनावों में जो हार का मुंह देखेगा उसका राजनीतिक कॅरियर भी संकट में आ जाएगा।
नागौर की राजनीति पर एक नजर-
नागौर में जाट समाज के करीब 30 फीसदी मतदाता है और दोनों की प्रमुख दलों के प्रत्याशी भी इसी समाज से है। जाट समाज के वोटर्स का बंटवारा होने से इस सीट पर मूल ओबीसी वोटर्स व अल्पसंख्यक वोटर्स निर्णायक की स्थिति में है। पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजे देखें तो यहां भाजपा काफी मजबूत रही है। लेकिन इस बार कांग्रेस और आरएलपी के साथ आने से टक्कर की स्थितियां है।
2019 में हनुमान बेनीवाल ने भाजपा अलायंस के साथ लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उस समय डॉक्टर ज्योति मिर्धा ही बतौर कांग्रेस प्रत्याशी उनके सामने मैदान में थीं। इस बार भी केवल घुड़सवार बदले है बाकि वही घोड़े और वही मैदान है।
पायलट की रैली नहीं-
नागौर में अब तक कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता की रैली नहीं हुई है। गुर्जर वोट बैंक को साधने के लिए हर बार परबतसर क्षेत्र में कांग्रेस सचिन पायलट की सभा करवाती है लेकिन इस बार सचिन पायलट का भी नागौर दौरा नहीं हुआ है। बेनीवाल के समर्थन में कांग्रेस के किसी बड़े प्रदेश स्तरीय नेता और राष्ट्रीय स्तर के किसी भी नेता नहीं आए है। हालांकि स्थानीय नेता जरुर हनुमान बेनीवाल के साथ में घूम रहे हैं। चर्चाएं तो यह भी है कि अब किसी भी कांग्रेसी विधायक ने अपने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को बेनीवाल के प्रचार-प्रसार नहीं लगाया है।
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